Wednesday, November 9, 2011

हरिद्वार त्रासदी ...क्या यही नियति हैं


रजा दक्ष का यज्ञस्थल .....जब रजा दक्ष ने भगवन शंकर की यग्य मैं अवहेलना की तब सटी ने यग्य मैं अपनी आहुति दे दी यह समाचार पा कर क्रुद्ध हो शिव ने प्रलयंकारी वीरभद्र का आह्वाहन किया अपने सर से जटा उखाड़ कर नील पर्वत पर पटक दी जटा के एक भाग से उत्पन्न हुए महाबली सहश्र भुजा धारी... वीरभद्र और दूसरे भाग से उत्पन्न हुई..... महाकाली खाप्परधारी रक्त पीने को आतुर  .....और राजा दक्ष के यग्य का संहार हुआ तब ...कनखल की उस धरती पर खड़े हो नंदी ने समस्त मायानगरी मायापुरी को जिसका विस्तार टिहरी से नारसन तक था शापित कर दिया तब से आज तक हरिद्वार की पवित्र भूमि ने कई बड़े यज्ञों की अपूर्णता देखि हैं संहार और दुर्घटनाये झेली हैं ...कुम्भ अर्धकुम्भ या सोमवती अमावास मृत्यु का प्रलय महाकाल की इस धरती पर तांडव करता ही हैं ..८-११-२०११ जब की पूरा राज्य अपनी स्थापना की पूर्वसंध्या  की तय्यारियों मैं जुटा था ...गायत्री महाकुम्भ मैं मची भगदड़ ने २० से अधिक शरीरों को लील लिया सेकड़ों  घायल और कई लापता ...और सरकारी आकडे और अखबार कहता हैं मामूली दुर्घटना .......वह पंडाल जहा वेदों की ऋचाये गूज रही थी कल तक पलक झपकते ही शमशान  भूमि मैं तब्दील हो गया ....
कथा चाहे कैसी भी रही हो शाप हो या न हो...पर कईयों के घर उजड़ गए कईयों ने अपने परिवार के सदस्य खो दिए ......आस्था का कैसा सैलाब हैं क्या इसे केवल बदइन्तजामी  कह कर टाल दिया जायेगा ...ऐसी घटनाये आस्था पर प्रश्नचिन्ह  लगाती ही हैं


 ये कैसी आस्था हैं ....???????????