रावण दहन
और उस दिन
रावण जलाया जाना था,
रंगीन कागजों से बना,
वीभत्स और
विकराल रावण!
दो महीनों के
अथक प्रयास से तैयार रावण
ससम्मान
रामलीला मैंदान
पहुचाया जाना था
उस दिन
रावण जलाया जाना था !
फिर धीरे धीरे
लोग इकठ्ठे होने लगे
रावण दहन का तमाशा
देखने को उत्सुक
चाट पकोड़ों की दुकाने
सजने लगी
मूंगफलियाँ भांजते हुए लोग
पानी बताशों से
गला तर करते लोग
इंतजार मैं हैं रावण दहन के
पोपकोर्न और चिप्स चबाते लोग
तमाशबीनों की तरह !
जाने क्यों ये लोग
अनंत में विलीन
उस रावण को
हर साल जिन्दा करते हैं
और फिर उसका अग्निदाह कर
अपनी आस्था को
सालगिरह की तरह मानते हैं
लेकिन
हर पल
अपने अन्दर पैदा होने वाले
रावणों को
नजरंदाज करते जाते हैं
जो पहले से ही मृत हैं
उस पर
धोंस ज़माने के बजाय
अगर हम
एक भी जिन्दा रावण
को फूंक सकें
तो दशहरा मनाये
वरना
इन रावणों के
लम्बे होते कदों तक
फिर कोई ब्रह्मास्त्र
पहुच नहीं पायेगा !!!
बहरहाल ...,,,,
रामलीला मैंदान से लौटते हुए
शाम के धुधलके मैं
भीड़ में परिवार से बिछुड़ी
एक बच्ची
अस्तव्यस्त
अर्धनग्न
लहूलुहान मिली हैं
सड़क से कुछ दूर
शिकार हुई हैं
किसी वहशी रावण का
यहाँ भी भीड़ थी
तमाशबीनों की
में भी तो था इन्ही में कहीं !
लेकिन
उसकी पनियाली आँखों का
सामना, न कर पाया था मैं
झकझोर गया
अन्दर तक कोई मुझे
उसकी आँखों में
रावण दहन का
वो दृश्य भी रहा हो जैसे
पर कैसा रावण दहन
वह रावण तो जैसे
आस पास ही था
सबके बीच
घुस कर बैठा हुआ !
घर पहुच कर
कपकपाते हाथों से
बेटी को सीने से लगाते हुए
आत्मग्लानी से भर गया था मैं
तब वह कागज़ का रावण
विकराल न लगा था मुझे
वास्तविक रावण भी
इतना वीभत्स न रहा हो शायद !
सोचता हूँ
उस लड़की की आँखों का
वह रावण,
वास्तव में,
जाने कब दहित होगा ?
जाने कब ????