Tuesday, August 23, 2011

रामलीला मैंदान में रावण दहन


धधक रहा मनस पटल धधक रहा ये ज्वार हैं
सूत्रपात हैं रक्त क्रांति का भभक रहा विचार हैं
लोटने लगे हैं काल सर्प, छातियों पे द्रोहियों के
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

कदम कदम हैं चल रहे नवीन स्वर हैं मिल रहे
लोकपथ पे क्रांति के.. असंख्य चिराग जल रहे
आंधियां रुकेंगी क्या. मिटाए मिट सकेंगी क्या
नहीं ये भीड़ तमाशाइ की,.. स्पष्ट जनाधार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

दो दो हाथ कर जरा, कर न तू भी बात कर जरा
ढहती इस दीवार पर जम के तूभी लात धर जरा
वक्त हैं यही संभल, क्रूर विषधरों के फन कुचल
हैं तू ही सुर्ख़ियों में पत्र की, तेरा ही समाचार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

उठा धनुष उठा खड्ग न दिग्भ्रमित हो वार कर
सशश्त्र लोकपाल से..... सुसज्ज हो संहार कर
यही समय हैं रक्त मांगती..खड़ी कपाल मर्दनी
घृणित ग्रसित व्यवस्था पर ये. आखरी प्रहार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

मिट न पायेगा तिमिर अगर जो सूर्य ढल गया
फिर न हाथ आएगा. अगर समय जो टल गया
संयुक्त हो प्रबुद्ध हो तू.... आज मरण युद्ध को
तप्त दिन गुजर गया निशा के बचे प्रहर चार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

Tuesday, August 16, 2011

आजादी.......

दे दी इन्हें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल !
साबरमती के संत तूने  कर दिया बबाल!!

क्यों थी ये  आजादी किसी को हैं क्या पड़ी !
निज स्वार्थ कामना  हो गई हैं देश से बड़ी !!
फिर डगमगाई कश्ती इनको जरा संभाल !
साबरमती के संत तूने कर दिया बबाल !!
रघुपति राघव राजा राम,.............

कोसेंगे रात दिन  तुझे रोएंगे भी तुझको !
बोएंगें रात  दिन तुझे काटेंगें  भी तुझको !!
फिर भी तो कम हुआ नहीं ये तेरा जमाल !
साबरमती के संत तूने कर दिया बबाल !!
रघुपति राघव राजा राम,.............

सब लूट के खायेंगे तुझे भी तो क्या पता !
क्यों गोलियां खाई थी  इन्ही से जरा बता !!
अब बच नहीं पाएंगे खड़ा सर पे महाकाल !
साबरमती के संत तूने कर दिया बबाल !!
रघुपति राघव राजा राम ..

पाने को आजादी जाने क्या-२ नहीं सोचा !
आजादी मिली तो हुआ जाने क्या ये लोचा!!  
हर रोज ही झुकता हैं भारत का यहाँ भाल !
साबरमती के संत तूने कर दिया बबाल !!
रघुपति राघव राजा राम,............. ............

Tuesday, August 9, 2011

निशदिन मैं तेरी आंख से


निशदिन मैं तेरी आंख से आंसू सा झर गया 
बस जिंदगी की चाह में,... हद से गुजर गया 

कहती थी दुनिया जिसको, ...दीवानगी मेरी
थी फब्तियों मैं हर दम,.... मजबूरियां  मेरी
पल भर के ही सुकून को क्या-२ न कर गया
निशदिन मैं तेरी आंख से आंसू सा झर गया
बस जिंदगी की चाह में,... हद से गुजर गया

दोनों जहाँ में जाने ..... ..किसकी तलाश थी
में खुद लिए था जिसको ....मेरी ही लाश थी
जो था  जमीर वो तो.....कबका था मर गया
निशदिन में तेरी आंख से आंसू सा झर गया
बस जिंदगी की चाह में ....हद से गुजर गया

यारों मुझे यकीन हैं.... क्यों  दोगे तुम  सदा
हंस  दोगे इस जुनून पे...... हो जाओगे जुदा
अब दूर ही चला जाऊंगा,  मैं भी अगर गया 
निशदिन में तेरी आंख से आंसू सा झर गया
बस जिंदगी की चाह मैं,... हद से गुजर गया

मत सोचना कि लौट के, यूं आऊंगा न कभी
आता रहूँगा याद मैं ऐसे तो जाऊंगा न कभी
क्या क्या संभालता पर, सब तो बिखर गया
निशदिन में तेरी आंख में आंसू सा झर गया
बस जिंदगी कि चाह में... हद से गुजर गया