Sunday, March 27, 2011

मेरे ही फैसलों ने ....

थी हसरत-ए-परवाज़ मगर हौसला न था !
या यूं भी था की सर पे मेरे आस्मा  न था !!


सारे शहर मैं सबने जिसे आम कर दिया !

महफ़िल मैं तेरी यार मेरा तज़करा न था !!

बेगाने इस  शहर  की, तनहाइयाँ न पूछ !

अपना कहें किसे कोई अपने सिवा न था !!

मैं  भी रह गया उन्ही काँटों मैं उलझ कर !

इसमें खता क्या मेरी अगर रास्ता न था !!

चेहरे पे जम गई थी, ख्यालों की सलवटें !

ऐसे तो हमसफ़र था मगर बोलता न था !!

मेरे ही फैसलों ने मुझे बरबाद कर दिया !

यूं  शक्ल पर उसकी कुछ भी खुदा न था  !!

Friday, March 25, 2011

हादसा


हादसा,, हर पल रहा हैं !
साथ ही तो, चल रहा हैं !!

धूप सर तक आ रही हैं !
मोम जैसा गल रहा हैं !!

आज भी गुजरा हैं, ऐसे !
जैसे पिछला कल रहा हैं !!

कश्तियाँ लौटेंगी अब तो !!
फिर से सूरज ढल रहा हैं !!

दोस्तों मुह फेर कर वो  !
हाथ ही तो, मल रहा हैं !!

दफ्न करदो अबतो यारों !
अब ना कोई, हल रहा हैं !










Saturday, March 12, 2011

कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर...


कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं ! ज्यूं गीत कोई प्यासे मन के,.. हर साँझ मुझे तरसाते हैं !! तुम काम सुता बासंती सी, यौवन की सहज अंगड़ाई तुम ! अतृप्त सलोने दिन ये मेरे, और अलसाई- अलसाई तुम !! रोके से रुका कब नेह प्रिये,, रोके न रुकी मन की सरगम ! मैं तप्त मरू के बीहड़ सा,, शीतल सुरभित अमराई तुम !! कितना भी धरूं मैं धीर मगर,,,उनिग्ध मुझे कर जाते हैं ! कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं !! तुम सप्त सुरों में झंकृत सी, भावों की प्रबलता हैं तुममे ! रचना में गुथा आलंबन हैं, व्यंजक सी चपलता हैं तुममे !! गीत कोई क्या लिखेगा,, तुमको न अगर वो जान सका ! वो चिराग मंदिर का अगर, उसकी उज्ज्वलता हैं तुममे !! क्यों नीर सदा इन नयनों के ,,जलप्रपात से झर जाते हैं ! कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं !! तुमसे ही मेरा ये जीवन हैं, इस जीवन का आधार तुम्ही ! तुम शब्द हो मेरी रचना के,, इन शब्दों का संसार तुम्ही !! जितना भी तुम्हे मैं कह पाऊ,, गीतों मैं तुम्हे पा लेता हूँ ! भावों का समर्पण तुमसे हैं, और रस छंदों की धार तुम्ही !! फिर भी विश्वास नहीं तुमको, ये नयन सदा झुक जाते हैं ! कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं !! ज्यूँ गीत कोई प्यासे मन के.... हर सांझ मुझे तरसाते हैं, !!!
......हरीश भट्ट....

Wednesday, March 2, 2011

क्यों न मैं शंकर हो जाऊं



महाशिवरात्रि की शुभकामनाओं के साथ समर्पित

ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! 
क्यों न मैं, शंकर हो जाऊं !!
विष पिलूं मैं, जग का सारा ! 
नीलकंठ, जग में कहलाऊँ !!

हो प्रदीप्त ये... छाया मेरी !
दोष विहीन हो, काया मेरी !!
आदर्शों की, भस्म रमा कर !
ओरों को, सत्पथ पर लाऊं  !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!

हो त्रिशूल वो, कर में ऐसा !
श्रीहरी के हो, वज्र के जैसा !!
दुष्कर्मों का, नाश करे जो !
पाशुपास्त्र, तुरीण मैं ऐसा !!
दुष्टों का, संहार कर सकूं !
नभ में, धर्मध्वजा लहराऊँ !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!

शैल सुता, हिम्मत हो मेरी !
क्रोधाग्नि,, ताकत हो मेरी !!
तम मेरा,, सहचर हो जाये !
तिमिर संग, संगत हो मेरी !!
अवगुण मेरे, गुण बन जाये !
अपने में ....परिवर्तन लाऊं !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!

संहारक, शिवदूत भी मैं हूँ !
दुख्भंजक अवधूत भी मैं हूँ !!
नीलेश्वर कालेश्वर भी मैं !
सोमनाथ औ' भूत भी मैं हूँ !!
पार्वती अर्धांग हो.... केवल !
सति को ही हर रूप मैं पाऊँ !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!