Saturday, February 26, 2011

उसने फिर से,.. गजल सुनाई हैं

जख्म अश्कों से, धो गया कोई !
ख्वाब आँखों  में , बो गया कोई !!

उसके हाथों मैं,.. कारसाज़ी थी !
थपकियों में ही,.. सो गया कोई !!

दिलकी खिड़की तो बंद कर लेते !
फिर न कहना कि लो, गया कोई !!

उसकी कोशिश तो थी हँसाने की !
कम नसीबी में..... रो गया कोई !!

फिर न आया पलटके.. आइन्दा !
मुह फुला करके... जो गया कोई !!

ऐसी दिल की लगी, अदावत में !
जिंदगी भर का.... हो गया कोई !!

उसने फिर से,.. गजल सुनाई हैं !
फिर तलाशो कि.. खो गया कोई !!

जख्म अश्कों से, .धो गया कोई !
ख्वाब आँखों मैं,....बो गया कोई !!

Friday, February 25, 2011

Happy and Safe HOLI

Happy and Safe HOLI with Organic Colors!!!

Holi is the festival of freedom from social norms. It knows no bars, no color, no creed. Everybody feels it is his right to enjoy. Songs, dance, drinks & food everything goes in excess. It can be said, Life turns Colorful when it is time for Holi. It is not just children, but the young and the old alike who take delight in this joyous festival of colors and demand every color in loads. Whatever be the choice of color, nobody remains in his original texture. Faces smeared with color look adorable at the end of the play. Really, the other name of the festival is FUN.

Are you aware of the Harmful Effects of Synthetic Colors?

* Synthetic colors are a cause of many health hazards. Desire of darker and more long-lasting colors led us to the use of these skin-unfriendly colors.
* Oxidized metals or industrial dyes mixed with engine oil are often used in such colors and can lead to a number of skin-diseases and are harmful for our eyes.
* Synthetic colors are particularly harmful for skin and can produce any kind of skin rash, itching and pimples i.e. allergic reaction.
* The Red color comes from mercury sulphate, Green from copper sulphate, Silver from aluminium bromide and Black from lead oxide which are really harmful for us.
* These dangerous side effects of Synthetic colors can make the festival of colors colorless rather than colorful.

Are you aware of the Health Benefits of Organic Herbal Gulal?

* Use of Gulals and colors in Holi is not just for mythological reasons but for its health benefits known to ancient physicians.
* At the commencement of spring when Holi is celebrated, the change of weather brings with it germs of diseases and playful throwing of colors made of medicinal herbs like Tulsi, Turmeric(Haldi), Neem etc. keep the germs under control.
* It is inherent medicinal properties of concerned herbs which provide these health benefits along with many more.
* They protect our skin from harmful micro-organisms without any harmful effect and provide other health benefits too.
* They are non-irritant and do not produce any kind of skin rash, itching and pimples.
* Improve skin texture
* Relieve inflammation
* Improve healing of wounds

Monday, February 14, 2011

१४ फ़रवरी यानि वेलेंटाइन डे



१४  फ़रवरी यानि वेलेंटाइन डे
ओर वो कहते हैं की प्यार के इजहार का दिन हैं, इकरार का दिन हैं ओर कहीं कहीं तकरार का दिन हैं. ये ठीक रहा वैसे की एक दिन फिक्स कर लिया की आज सुबह सुबह प्यार का इजहार कर लिया जाये अगर चूक गए तो जैसे कल तो फिर ये दिन आएगा नहीं... मानो इजहार न हुआ चुनाव का मतदान हो गया की ५ साल में एक दिन फिक्स... वैसे भी आजकल पंचायती चुनावों की बयार बह रही हैं
अपने लक्की जी को ही ले लो कल से परेशां हैं की भैय्ये वेलेंटाइन डे आने वाला हैं गिफ्ट शिफ्ट खरीद ले कुछ दो तीन तरह के पर्फियूम     दो-चार  डियो..इअरिंग्स .... musical कार्ड्स ओर न जाने क्या क्या.. अब आप पूछेंगे..... इतने क्यों भाई........ तो भईय्ये महिला मित्र भी तो हैं इतनी सारी.........तो क्या सबसे वेलेंटाइन  डे मनाओगे......... लो अब करो बात ..........भाई सभी को खुश करना जरूरी हैं ना .........अब टीना  को पर्फियूम.......  तो लीना को डियो .........शीला को इयरिंग  ...........तो रीना को कार्ड.. ऐसे ही तो हैं ये डे मानाने का रिवाज
रात से ही मोबाइल पे मेसेज आने लगे हैं एक को रिप्लाई  दिया......... दुसरे को प्रोपोस किया......... इटावा वाली कम्मो(कमलेश) को ग़ालिब का शेर तो............... करनाल वाली अन्नु को बुले शाह की रुबाई................ भाई मोबाइल न हुआ नुक्कड़ का कलवा नाइ  हो गया की इस गाँव की उस गाव तक पंहुचा दे .....हद तो तब हुई की बनारस वाली रितिका  को जो रिश्ते में कजन लगती थी जम्मू वाली रिद्धिमा  समझ के प्रपोस  कर दिया तब दिमाग झंनाया जब दो गालिया सुनी ओर तब ख्याल आया की मोबाइल में नंबर केसाथ नाम ओर पता लिखना कितना जरूरी हैं
सुबह पिछली गाली की शम्मो(शमिता) को महंगा वाल पर्फियूम ओर डियो का सेट देते समय भावुक हो गए थे अपने लकी  भाई अब उन्हें क्या पता की शम्मो के पर्स में आलरेडी  ४ पर्फियूम ऐसी ही पहले से पढ़े हैं
अब इन्टरनेट का जमाना  हैं तो ऑनलाइन इजहार भी जरूरी ही हैं फेसबुक .. ट्विटर ..ऑरकुट.. १००- १५० लोगो की फ्रेंड लिस्ट में अब ३० -४० प्रेमिकाए तो निकल ही आती हैं वैसे भी अपने लक्की भाई रंगीन मिजाज शख्श  हैं सो रेडीमेड स्क्रेप्स का पूरा बंच दे मारा छाट- छाट कर कोई ना कोई तो एक्सेप्ट कर ही लेगी...  ऐसे ही हैं अपने लकी  भाई  अब ऑरकुट पे आये ओर चेट न हो..!! कैसे हो सकता हैं ओर कमाल हैं लकी भाई का भी एक समय में ४- ४ से चेटिंग....... मजाल हैं जो एक भी  ऑनलाइन फ्रेंड छूट  जाये हाँ. ये अलग बात हैं की किसी की लाइन किसी में लिखी जाये गलती से याद नहीं रहता ना की किसको पहले प्रोपोसे कर चुके हैं गलती से दोबारा कर दो तो सामने वाले को शक होना लाजमी ही हैं ओर हाँ जब तक मेल के प्रोफाइल में ८०% फिमेल  ओर फिमेल  की प्रोफाइल में ८०% मेल फ्रेंड्स ना हो दोस्तों के आगे नाक ही ऊँची नहीं होती
प्रेमिकाय न हुई स्टेटस  सिम्बल हो गया

ऐसा ही हैं आज का इजहार-ए-मोहब्बत तेज लाइफ हैं तो पार्टनर भी तेजी से बदलना ही पढ़ेगा  महीना ख़त्म होते होते नई प्रेमिका के नाम की तख्ती लगाना जरूरी हैं......... वरना कालेज ओर दोस्तों  में ख्वामखाह बेकवार्ड  की संज्ञा में आ जायेंगे........ अब वो दिन तो हवा हुए जब फखरू मियां फाख्ता उड़ाया  करते थे मेरा मतलब की २० साल पहले के ज़माने की बात करूं तो तो मेरे एक मित्र थे उनका कालेज का फर्स्ट इयर तो देखने दिखाने ओर इंतजार करने में ही निकल गया  सेकेंड इयर में कहीं नजर  चार हो पाई  थी ओर थर्ड  इयर के अंतिम कुछ दिनों में ही इजहार   हो पाया  था वो भी पेसेंजर  ट्रेन की तरह जो न  जाने कितनी बार अटक अटक के पहुचती हैं
अब कहाँ वो पहले सी रवायत की अम्मा ने दही लेने भी भेजा तो ३ कोस दूर महबूब की गली की दुकान से इस उम्मीद में की वो भी मिल जाये कहीं समोसे खरीदती हुई .....
दोस्तों प्यार क्या किसी एक दिन का मोहताज हैं ? या केवल महेंगे गिफ्ट्स का ? प्यार का ऐसा बाजारीकरण देखता हूँ तो शर्म आती हैं....क्षमा कीजियेगा ....शायद आपको बुरा लगे .... ऐसे प्यार पर तारिख ओर टाइम देख के होने वाला प्यार तो शायद केलेंडर बदलते ही खुद को भी बदल ले
पर अपने लकी भाई मस्त हैं ५ प्रपोजल  तो असेप्ट हो भी गए उनके  ............
बधाई सबको .....

Saturday, February 5, 2011

कथा मधुलता की

दोस्तों ऊतराखंड में चंद वंश  के काल की लोक गाथाओं मैं प्रचलित एक प्रणय कथा के अंतिम कुछ पन्नो की व्यग्रता सुनाता हूँ  आपको, कथा बहुत लम्बी हैं पर अंत सभी प्रणय कथाओ  की तरह  ही होता हैं जब रानी मधुलता अपने प्रियतम सूर्यशेखर  से मिलने जाती हैं पर इसका पता रानी मधुलता के भाइयों को लग जाता हैं ओर वो रस्ते में सूर्यशेखर  को  घेर लेते हैं ओर इस लड़ाई में सूर्यशेखर  की विजय होती हैं ओर वह ३६  सैनिको को मौत की नींद सुला कर भी सरयू के तट पर पहुचता हैं जहां मधुलता उससे मिलने आने वाली थी किन्तु प्राणों की बलि दे कर,, लोकोक्ति कहती हैं की रानी मधुलता ने वही अपने हाथों से सरयू  के किनारे चिता बनाई  ओर अपने प्रियतम के साथ ही अग्निसमाधि ले ली   


अर्द्धरात्रि  में ....स्वप्न सजाये !
निकली थी इक.. नार अकेली !!
दुग्ध वर्ण.. .. परिकल्प सुंदरी !
मृगलोचन, मृगसम अलबेली !!

अधर सुधामय, चक्षु कांतिमय !
मन में इक......... संकल्प लिए !!
तन व्याकुल, पर दृण निश्चय से ! 
पिया मिलन की .....आस लिए !!

मार्ग कठिन पर निश्चल मन था !
रोके रोक नहीं ........पाई बाधाए !!
रुक रुक कर ...सजदे करती थी !
चारू चन्द्र की .........चंचलताए !!

दूर कहीं ...........तारों के आगे !
पगडण्डी हैं ..............गई जहां !!
वहीँ कहीं ... प्रियतम हैं उसका !
वही कही ......मंजिल के निशाँ !!

कदम तीव्रतर...... होते जाते !
ज्यों ज्यों मंजिल .पास आती !!
विरहाग्नि ........सीने में ऐसी !
अन्तकरण तक... .धधकाती !!

कदम दोकदम चार कदम अब !
कोई फासला.......... दूर न था !!
किन्तु देवहठ, उनका मिलन  !
अब विधना को ....मंजूर न था !!

दूर क्षितिज अभि अरुण नहीं था !
अभी रात्रि का..... प्रहर  शेष था !!
छूट रही......... तारों की शाला !
दूर हो रहा ......तम  विशेष था !!

वहां पार्श्व में ........रण भूमि में !
वीर अकेला........ डटा हुआ था !!
कई विरोधी............ नरमुंडों में !
काल दूत सा...... अड़ा  हुआ था !!

वीर हिमालय पुत्र...... सूर्य सम !
ऐसे वीर को ........क्या ही कहें  !!
ऐसे अकेला लड़ा.... .वो अरि से !
सर छत्तिस  धड पर ....नहीं रहे !!

लो पहुँच गई वो नाव घाट पर !
जहां मिलन की.. बात हुई थी !!
यही तो वो प्रतिक्षण हैं जिसमे !
प्रणय की वो शुरुआत हुई थी !!
 
वहीँ वीर वह..... खड़ा हुआ था !
धीर अचल .......मेरु पर्वत सा !!
रक्त रचित सा..... खड्ग लिए !
ओर शत्रु ह्रास को वो तत्पर सा !!

अश्रु झर गए ..श्वाश रुक गया !
उसकी छिद्रित .....देह देख कर !!
रक्त धार.... उन्नत ललाट पर !
कवच को बेधित  बाण देख कर !!

आह की  अंतिम श्वाश शेष था !
प्राण तो बस ..मृतप्राय हो गया !!
हाय ये निष्ठुरता... विधना की !
मिलन विरह ... पर्याय हो गया!!

शोक ! ये कैसा दृश्य .विदारक !
शोक ! ये कैसा...... क्लेश हुआ !!
एक सूर्य...... अरुणिम होता था !
एक सूर्य........... निश्तेज हुआ !!