Sunday, February 1, 2015

४५वे पड़ाव पर



नमस्कार दोस्तों
आज उम्र के पांचवें पड़ाव के मध्य में पहुँचते पहुँचते हर्षित   तो हूँ पर   कुछ अनमना सा गया हूँ विचलित  भी,,,,,,,,,,,,, जो  बीत गई सो बात  गई से संतुष्ट नहीं हो पाता
कल रात से ही व्यग्तिगत रूप  से  तथा फोन से भी  मित्र लोगों की शुभकामनाओं के पुष्पगुच्छ समेटते समेटते प्रफुलित मन से कृतज्ञ भी हूँ  इस आपाधापी में भीड़भड़क्के में और टूटती वर्जनाओं में   भी लोग किसी को याद करलें तो मन में एक आस तो रहती ही हैं कि जीवन अभी बांकी हैं
सोचता हूँ की जन्म से ले कर अब तक न जाने कितनी भूमिकाएं निबाहने को मिली न जाने कितने किरदार गढ़े स्वयं ने और न जाने किस किस ने, कुछ संबंधों  को तो केवल नाम ही दे पाया,,, कुछ  को वो  भी  नहीं,, कुछ को पूरी तत्परता और दृढ़ता से,, तो कुछ को बस  अनमने ही !!
  क्या ऐसा केवल मेरे साथ ही हैं ??
क्या पुत्र  से अधिक में पिता बन सका ? क्या प्रिय  से अधिक पति , क्या सहयोगी  से अधिक  मित्र बन पाया ? क्या सहकर्मी से अधिक सहधर्मी ?
मुझमें न जाने कितना कम रह गया ,,,कुछ पता चला तो कुछ  नहीं,, कभी किसी किसी ने जता दिया किसी    ने अक्षरश निभा लिया अनकहा सा
न जाने किस किस ने मुझे दृष्टि के किस किस कोण पर रक्खा !! पाना भले ही नियति न हो पर खोया तो मेने स्वयं के उपक्रम से ही हैं!! स्वीकार लेने में हर्ज ही क्या हैं। ....
आप भी कहेंगें ,,,भाई जन्मदिन पर ये  कैसी नकारात्मकता,,, पर दोस्तों इस पहलू के बिना दूसरे का क्या मोल ,,बात केवल "उम्रदराज " हो जाने तक की तो नहीं ही हैं। ..
आज जब आगुन्तक सांसों की गिनती कम देखता हूँ तो सोचता हूँ कितना  सा ही तो  बचा  हैं यूं भी गणित में मेरे नम्बर हमेशा कम ही रहे हैं फिर क्यों ये दुराव- छिपाव और कैसा प्रपंच
संबंधों की परिभाषाएं दुबारा जननी ही होंगी
तमाम  शुभकामनाओं के लिए ह्रदय से धन्यवाद ,,शुक्रिया