Thursday, January 30, 2014

पुण्यतिथि....


गाँधी...
गाँधी नाम का विचार 
६२ वर्ष पहले नहीं
और  न ही किसी
गोडसे ने
न ही किसी
धर्मान्धता ने
न ही किसी
सामाजिकता ने 
न अस्त्र ने न शस्त्र  ने
किसी ने नहीं मारा था उसे  तब
वो तो एक जर्जित काया
विपन्न तन से
अलग हुआ था केवल
किन्तु
उसे मारा हमने
और  रोज मार रहे हैं
हाँ....
रोज मर रहा हैं गाँधी
अपने ही देश में
रोज अविग्यित हो रहा हैं
रोज अविनयित हो रहा हैं
अपने  ही देश में
विचारों का तिलान्जलन
ओर आदर्शो का तर्पण
नियति बन चुकी हैं इस देश की
हाँ ...नियति
राष्ट्रपिता  सा शब्द
गाली सा लगने लगा हैं
और ....
और  तुझे तो मरना ही  था
मोहन दास करमचंद गाँधी
ये कृतघ्नों का देश हैं
गोली से नहीं मरता
तो शर्म से तो
कब का मर ही जाता
कब का
रोज पानी पी पी कर
कोसती नई पीढ़ी
और  भ्रष्ट कार्यप्रणाली को
आत्मसात किये
देश के दोगले कर्णधार
रोज ही तो कर रहे हैं
श्राद्ध गाँधी का
सही ही हैं
कलयुग का  पराकाष्ठ
यही हैं शायद 
जब घर वाले
अपने बूढ़े लाचार बाप को नहीं छोड़ते
तो बापू  तुझे  क्या छोड़ेंगे
बस !!??
करो माल्यार्पण
चाय काफी मंगवालो
गान्धित्व का ग भी न जानने वाले
झाड़ रहे हैं भाषण
और  फिर
पुण्यतिथि दिवस का
बजट भी तो ठिकाने लगाना हैं

Tuesday, January 7, 2014

तुम क्या गए.......


तुम क्या गए की आस का मधुमास विस्मृत हो गया !
संवाद संक्षिप्त से रहे  औरसंताप विस्तृत हो गया !!
दग्ध अधरों के प्रश्नों का उत्तर, मैं भला देता भी क्या !
झूठ की  उस परिकल्पना में..,,सत्य वर्जित हो गया !!

दो चरण भी साथ ले कर, क्यों चल सके ना सार्थ तुम !
नीतिगत प्रतिबद्धता में, क्यों बंध  सके ना पार्थ तुम !!
क्या मैं   अर्पित  चाहता था....क्या  समर्पित हो गया !
झूठ की  उस परिकल्पना में.…सत्य वर्जित हो गया !!

तुम कहो तो पूर्व अर्जित पुण्य........ तुमको सौंप  दूं  !
चिर प्रतीक्षित कामना का......... हेतु तुमको सौंप दूं !!
क्यों कहो मधुमास का अवसर.... विसर्जित हो गया !
क्या मैं  अर्पित  चाहता था... क्या  समर्पित हो गया !!

क्या पता था परिहास भी यूं अक्षरश  शिरोधार्य  होगा !
अनमना प्रतिकार तुमको ....सहज ही स्वीकार्य होगा !!
भाव जो समभाव  में  था, क्षण भर मैं वर्गित  हो गया !
झूठ की  उस परिकल्पना में.…सत्य वर्जित हो गया !!